बटन दबाये दिया जले ।
पंखा घुमे, ट्यूब लगे ॥
सोचा है क्या कभी आपने ।
कैसे बिजली इन्हे मिले ॥ १ ॥
दूर कहीं जनित्रों में बनकर ।
बिजली आती है तारोंपर ॥
अविरत ऊर्जा प्रसवत है ।
ये जनित्रों में क्या जादू है ॥ २ ॥
जनित्रों में जलता है ईंधन ।
बिजली में ढलता है प्रतिपल ॥
वह बिजली तारोंपर आकर ।
रोशन करती अपना घर घर ॥ ३ ॥
इससे जाहीर होता इक ।
कुदरत का करिष्मा मौलिक ॥
कहीं किसी के बिना कष्ट के ।
कहीं किसी को मिलता है सुख? ॥ ४ ॥
- नरेंद्र गोले २०१००७०७
पंखा घुमे, ट्यूब लगे ॥
सोचा है क्या कभी आपने ।
कैसे बिजली इन्हे मिले ॥ १ ॥
दूर कहीं जनित्रों में बनकर ।
बिजली आती है तारोंपर ॥
अविरत ऊर्जा प्रसवत है ।
ये जनित्रों में क्या जादू है ॥ २ ॥
जनित्रों में जलता है ईंधन ।
बिजली में ढलता है प्रतिपल ॥
वह बिजली तारोंपर आकर ।
रोशन करती अपना घर घर ॥ ३ ॥
इससे जाहीर होता इक ।
कुदरत का करिष्मा मौलिक ॥
कहीं किसी के बिना कष्ट के ।
कहीं किसी को मिलता है सुख? ॥ ४ ॥
- नरेंद्र गोले २०१००७०७
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